बीत गया है एक महीना
लिया न उसने हाल!
बैठ रमलिया मार रही है
झल्लर को मिसकाल!
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कह देगी वो सोच रही है
दिल की सारी बात!
जैसे तैसे दिन कट जाता
मगर न कटती रात!
बेदर्दी हो तुम क्या जानो
मैं कितनी बेहाल!
बैठ रमलिया............
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पूछेगी कैसे निभ पाये
इतने सारे फर्ज!
रामरतन के घर जाकर मैं
लेकर आई कर्ज!
तब अम्मा की मिली दवाई
है जी का जंजाल!
बैठ रमलिया...........
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बरसावन की बिटिया का भी
आज हुआ है गौन!
मत बनना अन्जान जरा भी
नहीं पूछना कौन?
देख चुकी हूँ बरसों पहले
बलम तुम्हारी चाल!
बैठ रमलिया............
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रोज उधारी माँगे फगुआ
मैं जाती हूँ टाल!
खड़ी समस्या है सिर पर ये
मुँह बाये विकराल!
निकल रहा दम चिन्ता में अब
सिकुड़ रही है खाल!
बैठ रमलिया...........
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सूख सूखकर हुआ छुहारा
यहाँ तुम्हारा लाल!
जाने कितने दिन बीते हैं
बनी न घर में दाल!
बड़की भौजी भी ऊपर से
करतीं रोज बवाल!
बैठ रमलिया..........
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धीरज श्रीवास्तव
मनकापुर,गोंडा
8858001681
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