(गीत)
गीत खुशी के कैसे गाऊँ
रोता दिल कैसे बहलाऊँ
जीवन में पग पग पर मुझको ,
मिली सदा पथरीली राहें ,
फूलो ने भी घाव किये हैं ,
सुनो कभी इस दिल की आहें
अंतर्मन जब हार मानता,
राह जीत की कैसे पाऊँ ।
गीत खुशी के........
सावन आया छलिया बनकर ,
फिर से मेरे जख्म दुखाने ,
महक उठे सारे वन उपवन ,
हरे हुए सब वृक्ष पुराने
अन्तस में जब पतझड़ हो तो,
बाहर कैसे पुष्प खिलाऊँ।
गीत खुशी के........
घुट घुट कर बीता है यौवन
दस्तक देता खड़ा बुढ़ापा
बना नहीं है वह पैमाना
जिसने सुख दुःख को हो मापा
जीवन भर बस पीड़ा सहकर
मन अपना कैसे हरषाऊँ।
गीत खुशी के........
निश्छल निर्मल प्यारा बचपन ,
काश लौट के फिर आ पाता
ऊंच नीच सारी मिट जाती,
सारा जग अपना हो जाता
गुजर गया वो प्यारा जीवन , उसको कैसे वापस लाऊँ ।
गीत खुशी के..........
【कुण्डलिनी छन्द】
विधा-कुण्डलिनी छन्द(दोहा+अर्द्ध रोला)
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1-
दुनियाँ में आतंक अब, छाया है विकराल
शैतानों का खौफ है, हाल हुआ बेहाल
हाल हुआ बेहाल, देखकर रोती मुनिया
युक्ति सुझाओ आज, बचे कैसे ये दुनिया।
2-
जग में सबसे प्यार कर,प्यार जगत का सार
प्यार हार सकता नहीं , प्यार जीत का द्वार
प्यार जीत का द्वार,दिखाता है पग-पग में
प्यार खिलाये सदा,फूल खुशियों के जग में।
3-
नेता भारत के हुये,अब तो रिश्वतखोर
जनता के सेवक नहीं, धन दौलत के चोर
धन दौलत के चोर,बने क्रेता विक्रेता
आओ मिलकर सभी,हरायें ऐसे नेता।
【गीतिका】
आधार छन्द-विधाता
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चलें अब दूरियाँ पाटें,दिलों को पास लाना है
हमें अपना वतन का बाग, फूलों से सजाना है।
हवाओं को बताना मत,ठिकाने उन चरागों के
धरा से अंधकारों को,जिन्हें जलकर मिटाना है।
कभी जुगनू,कभी चंदा,कभी सूरज,कभी तारे
उजालों के सहारे बन,यहाँ जीवन बिताना है।
जिगर में आग पैदा कर, वतन पर जान देने की
जला कर खाक कर देंगे,ये' दुश्मन को बताना है।
गरीबी,भूख,लाचारी,न जाने धर्म किसका क्या
भुला नफरत जमानें की, क्षुधा को बस मिटाना है।
उजाले ही उजाले हों,शमन हो अंधकारों का
हमें बन प्यार के दीपक, हमेशा जगमगाना है।
【मुक्तक】
आधार छन्द-विधाता पर आधारित तीन मुक्तक
मुक्तक-1
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हथेली की लकीरों को, कभी किस्मत नहीं मानो
बदलता भाग्य मेहनत से, अटल ये सत्य पहचानो
कभी इतिहास के पन्नें, पलट कर देख लो प्यारे
बना जो कर्म से योद्धा, सिकंदर है वही जानो।
मुक्तक-2
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लहू पीते गरीबों का, वतन का कर रहे सौदा
हमारे राजनेता अब, चमन का कर रहे सौदा
भगत,आजाद,विस्मिल का, भुला बलिदान ये पापी
यहाँ अब कोयला,चारा,कफन का कर रहे सौदा।
मुक्तक-3
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हमें तो दर्द गॉंवों का, शहर वाले बताते हैं
सदा रहते जो' गॉंवों में,उन्हें तो गॉंव भाते हैं
ये' कैसा आज आडम्बर, दिखाई दे रहा मित्रों
व्यथा हमको गरीबी की, महल वाले सुनाते हैं।
【कविता】
छन्द मुक्त काव्य रचना
"अाज का माडर्न आदमी"
भौतिकता की अन्धी दौड़ में/
सरपट दौड़ती जिन्दगी की पटरियों पर/
मशीनों जैसी चपलता से/
अन्तर में लिए भूख,वासना, तनाव व शून्यता /
भौतिक सुखों की चाहत लिए/
कहाँ जा रहा है आज का मनुष्य? /
दिल के किसी कोने में दबी मानवता /
लेती है हिलोरें /
पर लौट जाती है मूल में/
खाकर ठोकर पाश्विकता की दृढ़ चट्टानों से/
कौन समझाएगा इसे मिलेगा कुछ नहीं/
सिवाय अवसाद, बेचैनी अौर पतन के/
पर नहीं मानता अपनी मूढ़ता/
फिर भी भागे जा रहा है कुछ पाने की ललक लिए/
जबकि यह तय है कि इस खातिर लुटा देगा अपना सब कुछ/
वासनाओं के क्रूर पाश में इस कदर जकडा़ है ये/
कि भूल गया रिश्ते, सीमाएँ एवं बन्धन /
अौर मानता है अपने आप को आज के दौर का माडर्न आदमी/
पर सत्य यह है कि अर्जित है असभ्यता,
पूँजी, नकलीपन ,स्वाँग,धोखा अौर बेईमानी /
विकास के नाम पर स्थापित करता है मानक/
चुका कर नैतिक मूल्यों की कीमत/
बैठा है खोखली नींव की बुलन्द इमारत पर/
जिसके गिरते ही हो जाएगा अन्धी दौड़ का अन्त
/मंजिल तो दूर न मिलेगा पछतावे का भी वक्त/
फिर सृजित होगी नयी सृष्टि/
मानवता होगी जीवन्त/
यह आश लिए हम शामिल हों/
इस नयी सृष्टि की मानवता की दौड़ में/
जिसका गन्तव्य हो भगवान का दर......
परिचय---------
नाम-डॉ.दिनेश चंद्र भट्ट
जन्म-01-03-1973
शिक्षा-M.Sc.-Physics,B.Ed. & Ph.D.
व्यवसाय-प्रवक्ता(भौतिकी)
पता-गौचर(चमोली)उत्तराखण्ड
Email-dineshbhatt550@gmail.com
उपलब्धियाँ-पत्र-पत्रिकाओं में कवितायेँ प्रकाशित।
प्रतिक्रियाएं------------
डॉ.दिनेश चन्द्र भट्ट चमोली----
काव्य-शिल्पी मंच के सभी विद्वतजनों को मेरा सादर प्रणाम!
सर्वप्रथम मैं आदरणीय अवनीश त्रिपाठी जी का दिल की गहराइयों से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने आज के कार्यक्रम में मेरा परिचय कराया और मेरी रचनाओं को पटल पर स्थान दिया।साथियों मेरा साहित्यिक सफर अभी बहुत छोटा है ।मुझे लिखते हुये अभी एक साल भी नहीं हुआ है।कवितालोक जैसे मंच के सभी विद्वान साथियों से बहुत कुछ सीखने को मिला।अभी भी बहुत सारी कमियाँ हैं जो आपके उचित मार्गदर्शन से ही दूर होंगी।साथियो कमियाँ बतायें तभी सुधार कर पाऊँगा।आपके स्नेह का आकांक्षी.....
🙏🏼डॉ.दिनेश चंद्र भट्ट🙏🏼
डॉ रघुनाथ मिश्र सहज:---------सभी रचनाओं में सकारात्मक सन्देश -मौजूदा दशा का सजीव चित्रण -विधा का कुशलता पूर्वक निर्वहन-कुन्डलिनी छन्द अति रुचिकर।बधाई डा०दिनेश चन्द्र भट्ट जी।👍👍👍👍👍👍👍डा०रघुनाथ मिश्र 'सहज'
डॉ अर्चना गुप्ता:---------आद दिनेश भट्ट जी आपकी सभी रचनाएं बहुत सुन्दर लगी । आपका विषय भी फिजिक्स रहा है ये जानकार भी अच्छा लगा । मेरा सबसे प्रिय विषय ।बहुत2 बधाई आपको
नीलम श्रीवास्तव:-------------आज काव्य शिल्पी में डॉ दिनेश चन्द्र भट्ट जी की रचनाएं पढ कर आनंद आ गया
गीत,कुंडलिनी ,गीतिका ,मुक्तक और मुक्त छन्द कविता -----सारी रचनाएं अपने आप में पूर्ण लगीं
कवि ने आज के जीवन की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति का बड़ा ही यथार्थ चित्रण किया है साथ ही आधुनिक मानव जीवन का जो चित्र उपस्थित किया है , अति प्रशन्सनीय है
भाव और शिल्प दोनों ही उत्तम हैं पूर्ण सम्प्रेषनीयता के साथ रचना धर्मिता का निर्वाह कवि की अनुभूतियों और कल्पनाओं का सहज चित्रांकन है
समयाभव के कारण में थोडे में ही डॉ दिनेश चन्द्र भट्ट जी को हार्दिक बधाई और अनंत शुभ कामनाओं के साथ अपनी समीक्षा समाप्त कर रही हूँ
👌👌👌👌
अरविन्द अनजान:-----------डॉ दिनेश चंद्र भट्ट जी की लेखनी काव्य की सभी विधाओ पर अच्छी पकड़ रखती है ,,, छन्द, मुक्तक, गीत, गीतिका, गजल, कुण्डलिनी ,, सभी विधाओ पर उत्तम सृजन किया है आपने ,,,माँ शारदे ने आपको वाणी भी बहुत मधुर दी है ,,
👌👍👏👏👏👏👍👌👌👍🙏🙏🙏
मित्रो डॉ दिनेश जी मेरे बहुत अच्छे प्रेमी मित्र रहे हैं ,,,,
👇👇👇
आपको इनके बारे में आपको एक बात और भी बताना चाहूँगा ,,, आप चैस के बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं ,, और कई नेशनल, और इंटरनेशनल कॉम्पिटीशन में प्रतिभाग कर चुके हैं ,,,
,,
साहित्य के क्षेत्र में भी आप बहुत आगे जायेंगे ,,, माँ शारदे से यही कामना है जी
,,
👍👍👍👍👏👏👏👌🙏🙏🙏
सादर
अरविन्द, उनियाल, 'अनजान
हेमन्त कुमार कीर्ण:----------आज आदरणीय डा• दिनेश चंद्र भट्ट जी की रचनाओं से साक्षात्कार हुआ।
आदरणीय सर्वप्रथम आपका गीत "गीत ख़ुशी के …………" मानव जीवन के विविध रंगों को दिखाती है।
कुंडलिया छंद में सृजित रचनाएँ बहुत ही सुंदर हैं समाज के साथ साथ राजनीतिक व्यवस्था पर सटीक वार करतीं हैं।
आपकी गीतिका बहुत ही मनोहारी है। देशप्रेम की भावना जागृत करती गीतिका के लिए हार्दिक बधाई।
आपके मुक्तक बेहतरीन है।"कभी इतिहास के पन्नें,पलट कर देख लो प्यारे
बना जो कर्म से योद्धा, सिकंदर है वही जानो।" वाह वाह…… बहुत ही उम्दा भाव।
छंद मुक्त रचना हमें भावुक बनाती है और साथ ही आइना भी दिखाती है।
आपके बेहतरीन रचनाओं के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
शिल्प तो आपका लाजवाब है ही।
हेमन्त कुमार "कीर्ण"
राहुल द्विवेदी स्मित:------------आदरणीय डॉ.दिनेश चन्द्र भट्ट जी की रचनाओं से परिचय प्राप्त करने का अवसर मिला ।
आपकी बहुमुखी प्रतिभा का कायल तो मैं पहले से ही था किन्तु आज आपके विषय में और अधिक जानकार आपके व्यक्तित्व व साहित्यिक स्वरूप का और अधिक मुरीद हो गया ।
आपकी रचनाएँ आपका व्यक्तित्व स्वतः खोलकर सामने रख देती हैं । आपकी लेखनी को नमन करते हुए बहुत बहुत बधाई प्रेषित करता हूँ ।
सादर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
दिनेश कुशभुवनपुरी :------------ -वाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह् आदरणीय डॉ.दिनेश भट्ट जी आपकी रचनाएँ तो सदैव ही दिल की छूने वाली रहती हैं एवं आज तो आपके सतरंगी(काव्य के प्रत्येक विधाओं में पारंगत) एवं शतरंजी प्रतिभा के बारें में जानकर अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है एवं गर्व हो रहा है कि हमें भी आपसे बहुत कुछ सिखने को मिलेगा आपको कोटि-कोटि बधाई एवं शुभकामनाएं 👏🏻👏🏻💐💐🙏🏼🙏🏼
दिनेश कुशभुवनपुरी
मनोज मानव :-------------आदरणीय दिनेश भट्ट जी को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है
आज ज्यादा समय पटल पर नहीं दे पा रहा हूँ
लेकिन एक नजर सभी रचनाये पढ़ी सभी रचनाएँ शानदार
समीक्षात्मक कुछ नहीं कह पाऊँगा क्योकि सही ये है कि उस नजर से आज रचना पढ़ने का समय भी नहीं है मेरे पास
बहुत बहुत बधाई आद0 दिनेश भट्ट जी को
🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏
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