मानवता का महँगा जेवर बेच दिया
खुद को ही लालच में आकर बेच दिया
मानव ने काटे जंगल अपने सुख को
धरती का हरियाला बिस्तर बेच दिया
देख न पाये सुंदरता तुम अंदर की
हीरा तभी समझ कर पत्थर बेच दिया
लोगों ने क्यों अपना नाम कमाने को
खुद्दारी के जैसा तेवर बेच दिया
आज छुपाने को गम ,आँखों का हमने
आँसूं से ही भरा समंदर बेच दिया
यादों से उनकी जो महल बनाया था
वही उन्होंने कहकर खंडर बेच दिया
भूल 'अर्चना 'मात पिता को बच्चों ने
उनके सारे सपनों का घर बेच दिया
देखकर इक झलक ही नशा हो गया
बेकरारी का फिर सिलसिला हो गया
उनकी कसमें निभाना हमारे लिए
दर्द को आँख में थामना हो गया
दिख रहा खुद में उनका ही चेहरा हमें
आज दर्पण को जाने ये क्या हो गया
पहली पहली घिरी जो घटा सावनी
देख कर दिल मेरा बावरा हो गया
वो जो पहलू में थे कल तलक उनसे आज
ज़िन्दगी मौत का फासला हो गया
बंदिशों में छिपा हित है औलाद का
आज जाना वो जब खुद पिता हो गया
'अर्चना 'दर्द इतना पिया उम्र भर
अश्क का क़र्ज़ सारा अदा हो गया ।
नाम --डॉ अर्चना गुप्ता
शिक्षा -M.Sc (Physics) , M.Ed (Gold Medalist) , Ph.D
गृह नगर - Moradabad (U.P.)
Blog...www.itsarchana.com
E Mail- me@itsarchana.com
जन्म तिथि --15 जून
सम्प्रति - प्रतिष्ठित समाचार पत्र ,पत्रिकाओं में रचनाएँ(मुक्तक ,ग़ज़ल, कवितायें) प्रकाशित ,एक साझा काव्य संग्रह (उत्कर्ष काव्य संग्रह ), नव मुक्तक काव्य संकलन , साहित्य गौरव सम्मान (युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच2015 )।
लेखन विधा -गीत /ग़ज़ल / छंदमय काव्य /छंदमुक्त काव्य/गद्य लेखन ।
बेहतरीन गज़ल
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