📙कविता-माँ📙
मेरी हर साँस में
मेरे सब अहसास में
तुम जिंदा हो माँ
मेरे जीने में तुम
मेरे मरने में तुम
मेरी आँखों को ढापती
पलकों में तुम
मेरे चेहरे की हर
सलबटो में
तुम जिंदा हो माँ
मेरे सपनों में तुम
मेरी रातों में तुम
सुबह की हल्की धूप में तुम
शाम के गहरे रंगों में
तुम जिंदा हो माँ
तुम नहीं मरे थे
उस दिन
मैं मरा था।
तुम तो जिंदा हो
इस पत्थर के बूत में
अभी तक जान बनकर।
तुम जिंदा हो माँ
तुम जिंदा हो माँ
📙कविता-नमी📙
घर की दीवारों की नमी,
खिड़की दरवाजों का
तुफानों मे जोर-जोर से
टकराना,
पहले नही था ऐसा मंजर
इस आंगन का,
कितने वर्षों से क्यों
अब कोई नहीं आता यहां
दीवारों मे पडीं दरारों में
झांकने,
दरवाजे खिडकियों की
चटखनियों की
मरम्मत कराने
कितनी धूल जम गई है
आंगन में लगे आइने पर
जिसमें अब सब रिश्ते
धुंधली सी तस्वीर बन गए,
छत पर रखे गमलों मे
पौधों के अवशेष भी नही बचे हैं
जिन्हे मां सुबह -सुबह पानी से सिंचिती थी,
सींचा था जिन्होने हर एक रिश्तों को
जो इस घर में पलता था
आज मां नहीं है तो,
सब रिश्ते भी सूख गये है
बची है तो मेरी आँखों मे नमी
जो मैने इन दीवारों से ले ली,
जिसमें मेरी माँ की यादें बसी हुई है।
असर
अजय सिंह राणा चंडीगढ़
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