बुधवार, 20 दिसंबर 2017

माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान-2017 में चयनित कहानीकारों का सम्मान एवं संगोष्ठी का सफल आयोजन


सुलतानपुर,उ.प्र.20 दिसम्बर।
स्थानीय जिला पंचायत सभागार में 'कथा समवेत' पत्रिका द्वारा आयोजित "माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य प्रतियोगिता-2017" में चयनित कथाकारों में डॉ सोनी पाण्डेय (आज़मगढ़), गोपाल नारायण आप्टे (होशंगाबाद), अरुण अर्णव खरे (भोपाल),रश्मि शील (लखनऊ) को अंगवस्त्र, धनराशि, सम्मानपत्र एवं स्मृति चिह्न प्रदान करके सम्मानित किया गया। समारोह का आरम्भ माँ सरस्वती और माँ धनपती देवी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ।दो सत्रों के इस आयोजन में प्रथम सत्र की अध्यक्षता पूर्व उप पुलिस अधीक्षक ज्वाला प्रसाद पाण्डेय ने किया। इस कार्यक्रम के आयोजक  कथा समवेत के सम्पादक डॉ0 शोभनाथ शुक्ल ने समारोह में आये अतिथियों एवं कहानीकारों का स्वागत किया एवं परिचय दिया।सम्मानित कथाकारों में डॉ सोनी पाण्डेय ने कहा कि पुरस्कार हमारे लिए चुनौतियां लेकर आते हैं कि हमें कुछ और बेहतर करना है। हम कहानियों में जीवन लिखते हैं न कि जीवन के लिए कहानी। डॉ रश्मि शील ने कहानियों पर बोलते हुए कहा कि जब कोई विचार उद्वेलित करता है तभी कहानी बनती है।भोपाल के कहानीकार अरुण अर्णव खरे ने कहा पारिवारिक रिश्ते  आजकल टूटने के कगार पर हैं। इसी क्रम में डॉ गोपाल नारायण आवटे ने अपनी रचना प्रक्रिया में सामाजिक परिवेश और खासकर आदिवासियों की जीवन शैली के प्रभाव की चर्चा की।कथाकार चित्रेश ने प्रतियोगिता में आई कहानियों पर विस्तृत टिप्पणी करते हुए कहा कि आज कहानी में लोकभाषा और लोकमुहावरे बहुत प्रभावित कर रहे हैं।चयनित कहानीकारों के सम्मान के पश्चात समय समाज और साहित्य पर सोशल मीडिया का हस्तक्षेप विषय पर एक सार्थक बहस हुई।विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ शोभनाथ शुक्ल ने कहा हस्तक्षेप का तात्पर्य कहीं न कहीं जबरदस्ती भी है।हम नहीं चाहते तब भी उसकी गिरफ्त में आ जाते है।सोशल मीडिया कई स्थानों पर उपयोगी है तो इससे तमाम आपराधिक प्रवृतियां भी फैल रही हैं।
प्रसिद्ध आलोचक रघुवंशमणि ने विस्तार से इस विषय पर बोलते हुए कहा-सोशल मीडिया ने संवाद के क्षेत्र में एक नई क्रांति पैदा की है लेकिन यह एक दोधारी तलवार की तरह है इसका उपयोग दुष्प्रचार के लिये अधिक हो रहा है यह चिंतनीय है। उन्होंने आगे कहा कि तकनीक हमारी सामर्थ्य को बढ़ाती है तो हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है लेकिन सवाल यह है कि क्या सोशल मीडिया का प्रयोग सकारात्मक हो रहा है? इस विषय पर युवा आलोचक ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह'रवि' ने कहा -'सोशल मीडिया आधुनिक युग की नई ऊर्जा है ।इसका उपयोग सकारात्मक व नकारात्मक ढंग से बखूबी हो रहा है यह उपयोगकर्ता पर निर्भर है कि वह किस ओर जाता है।' इस सत्र का संचालन डॉ करुणेश भट्ट ने किया।
         समारोह के द्वितीय सत्र में 'कथा समवेत' पत्रिका के दिसम्बर अंक और चित्रेश के कहानी संग्रह 'अंधेरे के बीच' का विमोचन डॉ आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप, डॉ रघुवंशमणि, वीरेंद्र कुमार त्रिपाठी, संगीता शुक्ला,अवनीश त्रिपाठी, मथुरा प्रसाद सिंह जटायु, सोनी पाण्डेय, डॉ गोपाल नारायण आप्टे एवं अरुण अर्णव खरे,ममता सिंह,रश्मि शील द्वारा हुआ। अँधेरे के बीच कृति पर बोलते हुये श्याम नारायण श्रीवास्तव (रायगढ़) ने कहा कि संग्रह की कहानियाँ समय और समाज के यथार्थ को उजागर करती हैं और व्यवस्था पर चोट करती हैं।कई कहानियां देशज शब्दों के प्रयोग में पूरा न्याय बरतती हैं। सत्र की अध्यक्षता डॉ.आद्या प्रसाद सिंह 'प्रदीप' व संचालन ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' ने किया । समारोह में हनुमान प्रसाद मिश्रा, मथुरा प्रसाद सिंह'जटायु', जगदीश श्रीवास्तव, साक्षी शुक्ला, पूजा पाठक, प्रिया मिश्रा, भावना पाण्डेय, प्रशंसा शुक्ला, डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय 'साहित्येन्दु', जयंत त्रिपाठी, डॉ.सूर्यदीन यादव, डॉ.ओंकारनाथ द्विवेदी,विपिन विक्रम सिंह, डॉ.रामप्यारे प्रजापति , सुरेश चंद्र शर्मा, कपिल देव सिंह, शैलेन्द्र तिवारी, डॉ गीता सिंह, प्रीति त्रिपाठी, अन्नू त्रिपाठी,सन्दीप सिंह आदि की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय है।आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए डॉ शोभनाथ शुक्ल ने कहा कि ये कहानी प्रतियोगिता और सम्मान समारोह कहानी के अच्छे भविष्य की ओर संकेत करता है।अन्य विधाओं के मुकाबले कहानी लोगों की ज़ेहन में अच्छा प्रभाव छोड़ती है।सैकड़ों श्रोताओं की उपस्थिति इसका सजीव प्रमाण है।

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

सुलतानपुर के तीन साहित्यकारों को उ.प्र.हिन्दी संस्थान का पुरस्कार

    सुलतानपुर  । उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा सोमवार दिनांक 11 दिसम्बर 2017 की देर रात घोषित पुरस्कार सूची में जनपद के तीन साहित्यकारों को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है ।
यह जानकारी देते हुये साहित्यिक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था  अवधी मंच के सचिव ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' ने बताया कि हिन्दी साहित्य में सुलतानपुर जनपद का विशिष्ट स्थान है । इस बार उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने वर्ष 2016 के पुरस्कारों की जो घोषणा की है उसमें  दो लाख रुपये का लोकभूषण सम्मान कादीपुर तहसील के रानेपुर गांव निवासी डॉ.आद्या प्रसाद सिंह'प्रदीप' को , पचास हजार रुपये का महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार कादीपुर कस्बे के डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय 'साहित्येन्दु' को तथा यशपाल पुरस्कार परऊपुर गांव निवासी शंकर सुलतानपुरी को दिया गया है ।
डॉ.आद्या प्रसाद सिंह 'प्रदीप' को लोकभाषा पर किये गये उनके समग्र महत्त्वपूर्ण कार्य हेतु , डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय 'साहित्येन्दु' को उनकी पुस्तक तुलसीतत्व चिंतन पर निबंध विधा हेतु व शंकर सुलतानपुरी को उनकी कृति चौथा कन्धा पर कहानी विधा हेतु  पुरस्कृत किया गया है ।
जिले के यह तीनों साहित्यकार हिन्दी साहित्य की अपनी विधाओं में काफी चर्चित हैं । इनके सम्मान पर आशुकवि मथुरा प्रसाद सिंह'जटायु' , कथासमवेत के सम्पादक डॉ.शोभनाथ शुक्ल, कथाकार चित्रेश, के.एन.आई.के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.राधेश्याम सिंह , युगतेवर के सम्पादक कमल नयन पाण्डेय, संत तुलसीदास पी.जी.कालेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.करुणेश भट्ट,डॉ.ओंकारनाथ द्विवेदी , ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह'रवि' , अवनीश त्रिपाठी, मदन मोहन पाण्डेय 'मनोज' , ब्रजेश कुमार पाण्डेय 'इन्दु' , कृष्णमणि चतुर्वेदी 'मैत्रेय' आदि लोगों ने प्रसन्नता जताते हुये इसे जनपद का गौरव बताया है।

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

कथा समवेत द्वारा आयोजित कथा साहित्य प्रतियोगिता में "मोरी साड़ी अनाड़ी न माने राजा" कहानी को मिला प्रथम स्थान

सुलतानपुर 08 नवम्बर।
     माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान 2017 के लिए "कथा समवेत" द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता का परिणाम घोषित करते हुए सम्पादक डॉ शोभनाथ शुक्ल ने समय से पूर्व परिणाम देने के लिए निर्णायक मण्डल के सम्मानित सदस्यों का आभार व्यक्त किया है।बकौल उनके इस वर्ष सौ से अधिक आई कहानियों का मूल्यांकन कार्य निश्चित रूप से निर्णायकों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है।अन्तिम चरण (द्वितीय चरण) में निर्णायक मण्डल में शामिल कथाकार मदन मोहन, गोरखपुर,उ.प्र., जमशेदपुर के कथाकार एवं उपन्यासकार जयनन्दन तथा झाँसी के प्रो. जगदीश खरे के मूल्यांकनोपरांत  कहानी लेखिका सोनी पाण्डेय आजमगढ़ उ.प्र. की कहानी "मोरी साड़ी अनाड़ी न माने राजा" को प्रथम स्थान मिला है।होशंगाबाद के कहानीकार गोपाल नारायण आप्टे की कहानी "बुद्ध रिसॉर्ट" को द्वितीय स्थान तथा तृतीय स्थान कहानी "मकान", अरुण अर्णव खरे,भोपाल को मिला है।
     इसके अतिरिक्त तीन कहानियों को विशेष प्रोत्साहन पुरस्कार के लिए चुना गया है। ये कहानियाँ ब्रह्मदत्त शर्मा,हरियाणा की "बुढ़ापे का एक दिन", भरचन्द्र शर्मा बांसवाड़ा की "आखिर कौन" तथा रश्मि शील लखनऊ की "समाधान" हैं।आयोजक डॉ शुक्ल ने प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के लिए समस्त रचनाकारों का अभिवादन करते हुए कहा कि लगभग सभी कहानियाँ अपने कलेवर में अच्छी रहीं और इस प्रतियोगिता को गौरवान्वित करती हैं।
    राहुल सांकृत्यायन की धरती आजमगढ़ से जुड़ी हुई कथा लेखिका सोनी पाण्डेय अपनी रचनात्मक कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए हिंदी कथा साहित्य में अपना एक खास स्थान बना चुकी हैं।कथादेश, कथाक्रम,हस्ताक्षर,पाखी,साक्षात्कार,कृतिओर, नया ज्ञानोदय,आम आदमी, निकट,लमही, युद्धरत आदि प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ पत्रिकाओं में निरन्तर अपनी कहानियों के प्रकाशन से सांगोपांग उपस्थित हैं। "मोरी साड़ी अनाड़ी न माने राजा" कहानी समय,समाज और जीवन के अंतर्विरोधों की गहरी समझ और सरोकार के साथ यथार्थ की अभिव्यक्ति है।
     इसी तरह "बुद्ध रिसॉर्ट" संश्लिष्ट शिल्प में रची हुई ऐसी कहानी है जो दुर्लभ शारीरिक भौतिक सुख की होड़ और दौड़ को एक नए ढंग से व्याख्यायित करती है।निर्वस्त्र अवस्था में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों में जिस तरह संयम और व्यवहार में संतुलन स्थापित करती है कहानी,वह प्रशंसनीय है।
     "मकान" कहानी अपने पूरे कलेवर में पिता को पूरे तौर पर पुत्र द्वारा नकारे जाने और बिना उनकी मर्जी के मकान बेच देने के लिए प्रापर्टी डीलर को बुला लेना..... निःसन्देह पिता के लिए इससे बड़ी उपेक्षा क्या हो सकती है।संपत्ति के प्रति अगाध प्रेम बुजुर्गों के प्रति अपमान और उपेक्षा आज समय और विकसित समाज की सबसे बड़ी सच्चाई है। अन्य कहानियां भी अपनी भाषा,कहन और प्रस्तुति में मानव मन को बहुत गहराई से छूती हैं।ये कहानियाँ सिर्फ अनुभवजन्य स्थितियों का ही विश्लेषण नहीं करतीं बल्कि वस्तुगत सन्दर्भों की व्याख्या में विश्वसनीयता भी हासिल करती हैं।
       ध्यातव्य है कि उक्त "माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान" को 2011 में पत्नी संगीता शुक्ला के विशेष आग्रह पर डॉ. शोभनाथ शुक्ल ने अपनी माँ की पुण्य स्मृति में आरम्भ किया था।यह कथा प्रतियोगिता मूल्यांकन में अपनी पारदर्शिता और ईमानदारी के चलते निरन्तर विस्तार पा रही है और सम्पूर्ण भारत के प्रान्तों/जनपदों के कहानीकारों की पसंद हो गई है।
      प्रत्येक वर्ष 20 दिसम्बर को सम्मान समारोह और राष्ट्रीय कथा संगोष्ठी में भारी संख्या में पुरस्कृत रचनाकारों के अतिरिक्त निर्णायकों, लेखकों,आलोचकों की भागीदारी इसकी विशिष्टता है। 2011 से अब तक इस सम्मान से सम्मानित होनेवाले कहानीकारों में नदीम अहमद नदीम बीकानेर, शुभा श्रीवास्तव वाराणसी, प्रदीप कुमार शर्मा हिमाचल प्रदेश,वेद प्रकाश अमिताभ अलीगढ़, वासुदेव राँची, किशोर श्रीवास्तव दिल्ली, वीरेंद्र कुमार त्रिपाठी फैज़ाबाद, रूबी मोहन्ती दिल्ली, कमल कपूर हरियाणा, सेराज खान बातिश कोलकाता, विजय कुमार सिकंदराबाद, निरुपम मध्य प्रदेश, सैली बलजीत पठानकोट, अमिता दुबे लखनऊ, विजय चितौरी इलाहाबाद, अखिलेश पालरिया अजमेर, अश्विनी कुमार मानव पठानकोट, रेखा पाण्डेय जयपुर, अनूपमणि त्रिपाठी लखनऊ, प्रदीप उपाध्याय गोरखपुर तथा देवेंद्र कुमार मिश्र छिंदवाड़ा प्रमुख हैं।
        वर्ष 2011 से 2015 तक पुरस्कृत 18 कहानियों का संग्रह "पाठक की लाठी", अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित भी हुआ है जो इस आयोजन का मुख्य हिस्सा भी है।
     इस वर्ष 20 दिसम्बर को जिला पंचायत सभागार सुलतानपुर में आयोजित सम्मान समारोह  और कथा संगोष्ठी में चयनित कहानीकारों को अंगवस्त्र, प्रमाणपत्र, स्मृतिचिह्न और नकद राशि से सम्मानित किया जाना है।दो सत्रों में बंटे इस आयोजन की आवाज कथा जगत की निष्क्रियता और सन्नाटे को निश्चित रूप से तोड़ती है। इस बार की कथा संगोष्ठी का विषय "समय, समाज और साहित्य पर सोशल मीडिया का हस्तक्षेप" रखा गया है। उम्मीद है कि इस ज्वलंत विषय को लेकर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर विस्तृत चर्चा के जरिये कुछ प्रभावकारी निष्कर्ष अवश्य ही निकलेगा।
    डॉ शुक्ल ने इस प्रतियोगिता की आवाज दूर-दूर तक पहुंचाने तथा उसे व्यवस्थित कर अंतिम निर्णय तक ले जाने के लिए कहानीकार चित्रेश, श्यामनारायण श्रीवास्तव, बन्धु कुशावर्ती और अवनीश त्रिपाठी का विशेष आभार व्यक्त किया है।

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

ललिता देवी स्मृति न्यास द्वारा सुल्तानपुर में साहित्यकार सम्मान समारोह एवं पुस्तक विमोचन

15 अक्टूबर 2017
सुलतानपुर
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ललिता देवी स्मृति न्यास सुल्तानपुर उप्र द्वारा वृंदावन गेस्टहाउस हॉल में साहित्यकार सम्मान समारोह एवं पुस्तक विमोचन का आयोजन किया गया जिसमें सुल्तानपुर निवासी और ताज़महल आदि कई उम्दा फिल्मों में गीत लिखनेवाले मशहूर शायर ताबिश सुल्तानपुरी साहब के ग़ज़ल संग्रह 'दोपहर का फूल' और अवधी भाषा के अज़ीम शायर मोहतरम ज़ाहिल सुल्तानपुरी साहब के अवधी काव्यसंग्रह 'ढाई आखर' का विमोचन किया गया। साथ ही संस्था के अध्यक्ष सत्यदेव तिवारी जी ने संस्था की ओर से ज़ाहिल साहब को प्रशस्तिपत्र एवं 25 हज़ार रुपये की धनराशि देकर सम्मानित भी किया।अवधी,हिंदी,उर्दू भाषाओँ के सम्मिलन से निरन्तर 50 वर्ष से रचनाएँ करते हुए जाहिल साहब हमारे जनपद के सांप्रदायिक सौहार्द को स्थापित करते रहनेवाले कवि हैं।
  जनसंदेश टाइम्स के वरिष्ठ सम्पादक
सुभाष राय मुख्यअतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
उन्होनें कहा  राजनीति की ठगी को उजागर करने वाले कवि हैं जाहिल सुलतानपुरी । वे जनता को प्रेम करना सिखाते हैं आज बाजार के उजाले में बड़ा गहरा अंधेरा है ।एक शायर इसी की पहचान करता है । जाहिल और ताबिश ने इन्हीं अंधेरे को पहचान कर रोशनी फैलाने का काम किया है ।
     समारोह के विशिष्ठ अतिथि शकुन्तला मिश्र विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रोफेसर डी.एन.सिंह ने कहा कि महानगरीय साहित्यकार गोष्ठियों के नाम पर गप्प मारते हैं और छोटे शहरों के लोग साहित्य को हर पल जीते हैं व गोष्ठियों में गम्भीर रहते हैं ।प्रोफेसर देवेन्द्र ने कहा -ताबिश सुलतानपुरी की पुस्तक को देवनागरी लिपि में प्रस्तुत करके सुलतानपुर ने साहित्य पर उपकार किया है । जाहिल सुलतानपुरी पर अब साहित्य के आलोचकों का ध्यान जा रहा है यह काफी महत्त्वपूर्ण है ।
   आलोचक डॉ.राधेश्याम सिंह ने कहा  - जाहिल शब्दों के खिलाड़ी नहीं है लेकिन लोकतत्व पर उनकी पकड़ जबरदस्त है । जाहिल की रचनाओं का सही मूल्यांकन तब होगा जब उनकी प्रौढ़ रचनायें सामने आ जायेंगी । उन्होंने कहा - हिन्दी में ताबिश की रचनाओं के सामने आने से उनकी रचनाधर्मिता का विस्तार हुआ है ।
      साहित्यकार जगदीश पीयूष ने कहा - सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने वाले कवि हैं जाहिल सुलतानपुरी ।
इससे पूर्व अदबी सफर के पचास साल पूरा करने पर पच्चीस हजार रुपये की धनराशि , सम्मान पत्र,अंगवस्त्र सहित अनेक उपहार देकर वरिष्ठ सम्पादक सुभाष राय , प्रोफेसर देवेन्द्र,राज खन्ना , सत्यदेव तिवारी , टी.एन.चौबे व डॉ राधेश्याम सिंह द्वारा जाहिल सुलतानपुरी का सम्मान किया गया ।
स्व. ताबिश सुलतानपुरी को याद करते हुये उनकी स्मृति का सम्मान किया गया । ताबिश के पुत्र अंजुम फरोग सिद्दीकी ने प्रोफेसर देवेन्द्र और सुभाष राय से सम्मान पत्र ,अंगवस्त्र और उपहार ग्रहण किये ।
समारोह में डॉ.ए.के.सिंह ,डॉ.दीपक मल्होत्रा , डॉ. कपूर , डॉ. आद्या प्रसाद सिंह 'प्रदीप', नवगीतकार अवनीश त्रिपाठी,दिव्या समिति के अध्यक्ष उत्कर्ष सिंह, डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय'साहित्येन्दु' युवा साहित्यकार ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' , डॉ. ओंकार नाथ द्विवेदी , राम सहाय यादव,डा.एम.पी.सिंह समेत जिले भर के सभी क्षेत्रों के अनेक प्रमुख लोग पूरे समय मौजूद रहे ।समारोह की अध्यक्षता गनपत सहाय पी.जी.कालेज के पूर्व प्राचार्य डॉ.त्रिभुवन नाथ चौबे ने की।कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ पत्रकार राजखन्ना और आभार ज्ञापन सत्यदेव तिवारी ने किया ।

रिपोर्ट-- ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि

शनिवार, 16 सितंबर 2017

पुस्तक मेला लखनऊ में कवितालोक द्वारा 'काव्य-गंगोत्री' का आयोजन

           कवितालोक सृजन संस्थान लखनऊ के सौजन्य से हिन्दी दिवस पर ‘काव्य-गंगोत्री’ सामारोह का आयोजन 15वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका लखनऊ में प्रो. उषा सिन्हा पूर्व अध्यक्ष भाषा विज्ञान विभाग लखनऊ विश्व विद्यालय की अध्यक्षता और संस्थाध्यक्ष ओम नीरव के संरक्षण में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में अनागत काव्यधारा के प्रवर्तक डॉ. अजय प्रसून और विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे एवं साहित्यिक संस्था सुंदरम के अध्यक्ष नरेंद्र भूषण उपस्थित रहे। आयोजन के प्रथम चरण में आमंत्रित चौबीस हिन्दी सेवी रचनाकारों को उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंट कर ‘साहित्य गंगोत्री’, ‘काव्य गंगोत्री’ और ‘ग्रंथ गंगोत्री’ मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। इस सत्र का संचालन कविवर सुनील त्रिपाठी ने किया। दूसरे चरण में कवितालोक के पिछले आयोजन की स्मारिका ‘गीतिका गंगोत्री’ का लोकार्पण अध्यंक्ष, मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया, जिसे उपहार स्वरूप भेंट करने वाले सुभाञ्जलि प्रकाशन के संचालक डॉ. सुभाष चन्द्र को 'ग्रंथ गंगोत्री' सारस्वत सम्मान से विभूषित किया गया। काव्य गंगोत्री के तीसरे चरण में हिन्दी दिवस पर काव्यपाठ का क्रम प्रारम्भ हुआ जिसमें रचनाकारों ने हिन्दी की विभिन्न विधाओं में मनोहारी काव्यपाठ प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन संस्थाध्यक्ष ओम नीरव ने किया। वाणी वंदना से काव्य-गंगोत्री का प्रारम्भ करते हुए ओज कवि उमाकान्त पाण्डेय ने इन पंक्तियों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया-
माँ शरदे करूँ मैं शत-शत तुम्हारा वंदन,
सब काट दो मनस के जितने पड़े हैं बंधन।
       श्याम फतनपुरी ने गीतिका के माध्यम से हिन्दी-प्रयोग का सार्थक संदेश देते हुए कहा-
विश्व-पटल पर श्याम, बढ़ेगा भारत अपना,
हिन्दी में तुम अगर, राष्ट्र व्यवहार करोगे।
      पद्मकांत शर्मा प्रभात ने हिन्दी के गौरव की बात को कुछ इसप्रकार व्यक्त किया -
जन जन के प्राण प्राण में है बसी हुई
हिंदी हमारे राष्ट्र का गौरव निशान है
       सौरभ टण्डन 'शशि' की इन पंक्तियों को सराहा गया
प्रेम घुला हर शब्द में, रखना मुझे सँभाल,
भारत की पहचान हूँ, सुन हिन्दी के लाल ।।
       डॉ अशोक अज्ञानी ने इन पंक्तियों ने श्रोताओं को वाह-वाह करने पर विवश कर दिया- 
हिन्दी का वही हाल है हिन्दोस्तान में
लाचार बाप की ज्यों बेटी जवान है।
       डॉ अजय प्रसून ने हिन्दी के पक्ष में स्वर मुखरित किया-
जिसका शब्द शब्द मधुरिम है जिसमे भाव भाव पूरित है ।
जिसकी लिपि है देवनागरी, उसमें मानवता संचित है ।
यह देवों की मनोकामना मन में आठों प्रहर रहेगी ।
        नरेंद्र भूषण की बात पर खूब वाहवाही मिली-
मान करें हर भाषा का,पर /हिन्दी पर अभिमान करें हम।
चर्चा हर भाषा की हो,पर/हिन्दी का गुणगान करें हम।
        दिनेश कुशभुवनपुरी ने सशक्त स्वर अपने विचार व्यक्त किए कुछ ऐसे-
दुविधा अब मत पालिए, ये है अपना देश।
हिंदी का गौरव बढ़े, ऐसा करो विशेष॥
       उमा शंकर शुक्ल ने हिन्दी के पक्ष में पढ़ा तो श्रोता झूम उठे-
मान हमारा शान हमारी हिन्दी है ।
हमको प्राणों से भी प्यारी हिन्दी है ।।
       शोभा दीक्षित भावना ने मन के उद्गार इसप्रकार व्यक्त किए-
नीले अम्बर का व्याकरण इसमें,
संस्कृति का सुवास है हिंदी।।
       निवेदिता श्रीवास्तव ने गागर में सागर भरते हुए कहा- 
हिन्दी भाषा पूज्य है, करें सदा सम्मान।
हिन्दी माता तुल्य है, दूजी मौसी जान।
       संध्या सिंह के दोहे को श्रोताओं ने भरपूर सराहा-
हिंदी में अनुभूतियाँ हिंदी में उद्गार ।
बाकी सब अनुवाद है हिन्दी मूल विचार।
       मन मोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने सुनाया -
क्यों मातृ-भाषा’ अपने’ ही’ घर में है उपेक्षित,
हिन्दी बिना है’ देश का’, शृंगार अधूरा।
       डॉ मंजु श्रीवास्तव ने हृदय के उद्गार कुछ इसप्रकार व्यक्त किए-
हँसाती है, रुलाती है, मनो को गुदगुदाती है,
हमारी मातृभाषा ये सरस गङ्गा बहाती है।
        सुनील त्रिपाठी ने करतल ध्वनि के बीच पढ़ा-
पढ़ें लिखें बोलें हिन्दी हम हिन्दी से जोड़े सबको,
बात करें जब हिन्दी की तो दिल में हिंदुस्तान रहे।
       ओम नीरव ने सुनाया -
भारत के जन-मन बसी, सुन्दर सरस सुगम्य।
माँ वाणी की वत्सला, हिंदी परम प्रणम्य।
       काव्य पाठ से आयोजन को शिखर तक पहुंचाने वाले अन्य कवियों में मुख्य थे- डॉ उषा सिन्हा धीरज श्रीवास्तव, डॉ अमिता दुबे, डॉ कैलाश नाथ मिश्र, उमा शंकर शुक्ल, पारसनाथ श्रीवास्तव।