सोमवार, 29 अगस्त 2016

सागर प्रवीण की उत्कृष्ट गीतिका

🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷
सामने नयनों के खुल जाते हैं सारे संस्मरण
हो रहा हो जब ह्रदय में गीतिका का अवतरण
🌼🌸
पास मीठी चीज़ के जैसे कि पहुँचे चीटियाँ
दुःख चला आता है यूँ करते हुए अब अनुसरण
🌹🌺
आप मेरी गलती पर अँगुली उठाना बाद में
आप कर लें ठीक पहले आपका अंतःकरण
🌳🌲
झूठ मक्कारी की बीमारी से हो लिपटे हुए
आपका क्षय रोग से लगता ग्रसित है आचरण
🌴🌱
पुष्प इक मसला गया हैवानियत के हाथों से
हो रहा था कहने को सारे शहर में जागरण
🍀🌿
कर रहे हैं लोग अपनी सभ्यता का हीं हनन
पश्चिमी तहजीब का जो कर रहे हैं अनुसरण
🌾🌵
सत्य पढ़ने का हमें भी आ गया है अब हुनर
अपने चेहरे से हटा लो झूठ का तुम आवरण
🌻💮
बह रही है रोष इर्ष्या और बदले की हवा
कितना दूषित हो गया है आज का वातावरण
🍂💐
रोपता कोई नहीं इक वृक्ष धरती पर कहीं
कर रहे हैं कामना ये, स्वस्थ हो पर्यावरण
🐠🐝

सागर प्रवीण
भदोही, उत्तर प्रदेश

शिखर अवस्थी का देश के प्रति सकारात्मक सोच का गीत

मैं भारत में प्रेमवाद का वास कराने आया हूँ।
उग्रवाद आतंकवाद का नाश कराने आया हूँ।

मैं भी लिख सकता हूँ शबनम जैसी पलकों की आशा को,
मैं भी लिख सकता हूँ प्रियतम के मन की अभिलाषा को।
लेकिन जब तक भारत की पीड़ा को लोग बढ़ाएँगे,
तब तक निडर लिखूंगा केवल अंगारों की भाषा को॥
जो अंगारों के प्यासे, उनकी प्यास मिटाने आया हूँ।
मैं भारत में.........................॥🇮🇳

अब तो चारों ओर कहर वालों का आसन दिखता है,
मंत्री नेता और पुलिसवालों का शासन दिखता है।
ये करते बदनाम व्यवस्था मिलकर शासन सत्ता की,
जिनके हाथों में होती है पर्ची वेतन भत्ता की॥
मैं इनको निज संविधान की राह दिखाने आया हूँ।
मैं भारत.............................॥🇮🇳

कश्मीरी घाटी के आगे कुरुक्षेत्र शर्मिंदा क्यों?
करता जो नित हत्याएं निर्दोषों की वह जिंदा क्यों?
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े यदि तो आजादी है,
गद्दारों के शीश काटने वाला भी अपराधी है॥
मैं संसद के संविधान पर दाग लगाने आया हूँ।
मैं भारत.............................॥🇮🇳

फाँसी के फंदों को भी थी शर्म नही आयी पल भर,
भगत सिंह जैसे लोगों ने जब चूमे फंदे चढ़कर।
क्रांतिकारियों ने मिलकर कैसा इतिहास बना डाला,
लेकिन अब तो राजनीति ने सब परिहास बना डाला॥
इन्हीं प्रमाणित बातों से उत्साह बढ़ाने आया हूँ।
मैं भारत.............................॥🇮🇳
 
🇮🇳शिखर अवस्थी, सीतापुर🇮🇳✍

शनिवार, 27 अगस्त 2016

कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में काव्यशाला का आयोजन

            कवितालोक सृजन संस्थान के तत्वावधान में एक काव्यशाला का आयोजन महोना के चन्द्र वाटिका शिक्षा निकेतन में व्यवस्थापक डॉ० सी.के. मिश्र जी के सौजन्य से व संस्थान के संरक्षक श्रीओम नीरव जी के संरक्षण में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता कविश्रेष्ठ डॉ अजय प्रसून जी ने की और संयोजन और संचालन युवा कवि राहुल द्विवेदी स्मित ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में बिहार से पधारे श्री परमहंस मिश्र 'प्रचंड' जी और विशिष्ट अतिथि के रूप में शालामऊ, सीतापुर से आये केदार नाथ शुक्ल जी तथा बीबीपुर से आये नारायण दीन जी उपस्थित रहे। काव्यशाला का प्रारम्भ मुकेश मिश्र जी की सुमधुर वाणी वंदना से हुआ । इस अवसर पर अनेक कवियों ने छंद, मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, व्यंग्य आदि के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया ।
         कार्यक्रम के दौरान कविता लोक सृजन संस्थान के संरक्षक ओम नीरव जी द्वारा चन्द्र वाटिका शिक्षा संस्थान के मैनेजर डॉ० सी०के० मिश्र जी, बिहार से पधारे परमहंस मिश्र 'प्रचण्ड' जी तथा सीतापुर से आये केदार नाथ शुक्ल जी को उनके साहित्य के उत्थान में योगदान हेतु 'कविता लोक रत्न सम्मान' से सम्मानित किया गया ।
             कार्यक्रम के दौरान विद्यालय के बच्चों ने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के आधार पर मंचासीन अतिथि व विशेषज्ञों से साहित्य व कविता के सन्दर्भ में अपने प्रश्न पूछे और उनका संतुष्टि पूर्ण उत्तर प्राप्त किया । प्रश्न पूछने वाले बच्चों में कक्षा-१० के छात्र सूरज कुमार ने "दोहों/ छंदों में प्रयुक्त होने वाले शब्द 'यति' का अर्थ" अपने सरल शब्दों में पूछा तो कक्षा ९ की छात्रा बुशरा फातिमा ने "एक कविता कम से कम कितनी पंक्तियों में कविता कही जाएगी ?" को मंच के सम्मुख रखा, साथ ही कक्षा १० के ही छात्र अर्पित शर्मा ने "एक कवि द्वारा कविता में लिखे जाने वाले गहरे विचारों को हम कैसे ग्रहण कर सकते हैं ?" पूछकर सभी को आश्चर्य चकित कर दिया । कार्यक्रम में इस माह ओम नीरव जी ने समीक्षा हेतु विपिन मलीहाबादी जी की गीतिका को चुना और उसकी सूक्ष्म से सूक्ष्म दृष्टि से समीक्षा करते हुए उन्होंने गीतिका के गुण व दोषों को इंगित किया तथा दोषों को दूर करने हेतु आवश्यक सुझाव भी दिए ।
               इस अवसर पर अजय प्रसून जी ने 'आत्मा के स्वर्ग में खिलता हुआ, आंसुओं के नीर में मिलता हुआ । जिंदगी का सच कभी हारा नहीं, क्यों कि सच है रेत की धारा नहीं ।।'
परम हंस मिश्र 'प्रचण्ड' जी ने- 'दुश्मनी छोड़िये मीत बन जाइये, आप खुद हार कर जीत बन जाइये ।'
              केदार नाथ शुक्ल जी ने- 'होकर दुःख से द्रवित शिला जब गलने लगती है, तभी हमारी रुकी लेखनी चलने लगती है ।'
उमाकान्त पांडे जी ने 'जादू बाय संसद भवन बा मा......।'
          गौरव पाण्डे ने 'हम अपनों से हैं दूर आज इस कदर, कि जबसे दो पैसे कमाने लगे ।'
नीलम भारती ने ' होठों पर उनका ही तराना होता है, जिनका दिल में ख़ास ठिकाना होता है ।'
            मुकेश कुमार मिश्र जी ने ' कभी गोपियाँ संग नाचे स्वयं  तो कभी आर्य भू के जनों को नचाया, कराई मही मुक्त भी पापियों से उन्हें नर्क के द्वार भी है पठाया । '
            मन्जुल मन्ज़र लखनवी जी ने ' तुझको खुद ही हिला के रख देगी, जिंदगी को मिटा के रख देगी । ताब अच्छी नहीं मुहब्बत में, सारे रिश्ते जला के रख देगी ।।'
            मिजाज लखनवी जी ने 'क्या से क्या हो गया तेरे लिए, दर-ब-दर मैं हो गया तेरे लिए ।'
विपिन मलीहाबादी ने 'गीतिका भी बनी अब गजल की बहन, है ठिकाना मिला अब मिला है गगन ।'
             सम्पत्ति कुमार मिश्र 'भ्रमर बैसवारी' जी ने 'जिनकी त्रिलोक में है छाई महिमा अपार, ग्यानी महाज्ञानी कोई पार नही पाता है ।'
शराफत बिसवानी जी ने 'क्या मजा मिला उन को दिल मेरा जलाने में , जान मेरी हाजिर थी जिन के मुस्काने में ।'
              शिखर अवस्थी जी ने 'लेकर कलम हाथ में अपनी भारत माँ का गान लिखो । जब भी लिखना पड़े देश तो अपना हिंदुस्तान लिखो ।।'
              राम राय राणा जी ने 'पाक मेरे मित्र पाक-पाक सब काम कर । पाक नाम होने से तू पाक न कहायेगा ।।'
             मनोज शुक्ल 'मनुज' जी ने 'वक़्त का चेहरा घिनौना हो गया, आदमी अब कितना बौना हो गया । सभ्यता का जो दुपट्टा था कभी, आज वैश्या का बिछौना हो गया ।।'
             राहुल द्विवेदी 'स्मित' ने ' मेरी पलकों के साये में, ख़्वाब सजाकर तुम पलते हो । बिना तुम्हारे रह न सकूँगा, यदि कहते हो, सच कहते हो ।।' पढ़कर खूब तालियां व वाह-वाही बटोरी ।
      
         संयोजक-राहुल द्विवेदी 'स्मित', इटौंजा लखनऊ

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

नीलम भारती की ग़ज़ल-'होंठो पर उनका ही तराना होता है'

काव्य शिल्पी फिलब्दीह-10
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁

होंठो पर उनका ही तराना होता है
जिनका दिल में ख़ास ठिकाना होता है

ग़म के साये भी ग़र मिलते हैं यारो,
हँसते हँसते साथ निभाना होता है

रहते है जो सदा नशे में दौलत के
उनको इक दिन ठोकर खाना होता है

हो जाये गर यार ख़फ़ा दो पल को भी ;
तो समझो जीवन वीराना होता है

रोकर कोई जब चलता है महफ़िल से
तय है उसका जख़्म पुराना होता है

आशिक तकते है अब तक उन गलियो को
जिसमें उनका आना जाना होता है।

नीलम भारती
इटौंजा, लखनऊ

डॉ. दिनेश चंद्र भट्ट की ग़ज़ल-'अश्कों को तो दर्द दिखाना होता है'

काव्य शिल्पी फ़िलबदीह-10
🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷

अश्कों  को  तो  दर्द दिखाना होता है
और खुशी पर भी मिट जाना होता है।

रुखसत होकर लोग गए जो दुनिया से
क्या उनका भी कोई' ठिकाना होता है?

रूठ गए  जो दिल की  बस्ती से याराँ
मुश्किल उनको फिर से पाना होता है।

बेगानी  दुनिया में  दिल के मारों का
मयखाना महफूज ठिकाना होता है।

दैरो हरम नहीं सुख चैन दिलाते अब
काम जहाँ नफरत फैलाना होता है।

डॉ.दिनेश चन्द्र भट्ट
चमोली, उत्तराखण्ड

पुष्पेंद्र 'पुष्प' की ग़ज़ल-'हाय वो कितना सितमगर हो गया'

हम समझते थे कि दिलबर हो गया
हाय! वो कितना सितमगर हो गया

किस सलीके से निभाई थी वफ़ा
प्यार फिर भी रेत का घर हो गया

कौन पहचाने हमें इस भीड़ में
आइना भी जैसे पत्थर हो गया

देखकर उसकी अदा का बाँकपन
आज हर कोई सुख़नवर हो गया

वस्ल का इक पल मिला जो ख्वाब में
हिज़्र  का  ऊँचा  मुक़द्दर  हो  गया

पुष्पेन्द्र 'पुष्प'
उरई, उत्तर प्रदेश

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

रामशंकर वर्मा जी का नवगीत 'हम हैं पेटीकोट'

यथार्थ आकलन करती हुई एक ऐसी रचना जिसे अवश्य ही पढ़ना चाहिए--हम सभी को.

तुलसी सूर कबीर निराला
सब कौड़ी के तीन
हम हैं पेटीकोट
हमारी कविता समकालीन।

वह भी कोई कविता
जिसको छंदों से अनुराग
जीवन के अधरों पर लय का
उत्तरजीवी राग
चार जने हम कविता पढ़ते
सुनते केवल तीन।

हम हैं पेटीकोट
हमारी कविता समकालीन।

पार समंदर हमने खोजे
कविता के गुणसूत्र
और तुम्हारी कविताई
बैलों का गोबर मूत्र
हम हैं प्रगतिशील मन्मथ की
चौंसठ कला प्रवीन।

हम हैं पेटीकोट
हमारी कविता समकालीन।

लोहू के आँसू  हिरदय की
धड़कन सब खटराग
हम अंगार निगलने वाले
हगते विप्लव आग
तुम हो धूल पसीना हम हैं
ईरानी कालीन।

हम हैं पेटीकोट
हमारी कविता समकालीन।

रचनाकार-
श्री रामशंकर वर्मा

बुधवार, 24 अगस्त 2016

विजय बागरी जी की उम्दा ग़ज़ल

🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
बड़ी अजीब है इस क़ायनात की महफ़िल।
कहीँ निजात कहीँ मुश्किलात की महफ़िल।।
🌵🌺
कहीँ रोती हुई खुशियों की सहर और कहीं।
मुस्कुराती हुई दर्दो की रात की महफ़िल।।
🌿🍀
वो फ़रेबों की नुमाइश वो मखमली सूरत।
वो गुलबदन है किसी वारदात की महफ़िल।।
🌳🌲
ये  बहारें  ये  नज़ारे  तो  चार  दिन  के  हैं।
आख़िरश ज़िंदगी जश्ने वफ़ात की महफ़िल।।
🍁🍂
यूँ समझ लो कि बिसातें बिछीं अदावत की।
नज़र आती है फ़क़त इख़्तलात की महफ़िल।।
🌼🌺
शक़्ल  इंसान  की  करतूत  दरिंदों  जैसी।
कंकरीटों के शहर जंगलात की महफ़िल।।
🌴🌾
बदगुमानी  के  नशे  में  हसीन  रातों  को।
कौन कहता है"विजय"एहतियात की महफ़िल।
💮💮💮💮💮💮💮💮💮💮💮💮💮
विजय बागरी"विजय"

मंगलवार, 16 अगस्त 2016

श्वेता राय रचित सरस्वती वन्दना

🍂🍁🍀🌿🌾🌵🌴🌳🌲🌱🌷🌼
सुवासिनी सुबोधिनी सुदीप्ति प्रात वंदिता|
समस्त लोक की सुनो अशुद्धि द्वेष खंडिता||
अहो! कला विवेक बुद्धि ज्ञान मान दायिनी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||

🍁🍂🌿🍀🌿🍀🍁🍂🍁🍂🍁🍂
बसो कि कण्ठ में तुम्हीं सुगीत का बहाव हो|
गहो कि बुद्धि में तुम्हीं सुबोध का प्रवाह हो||
सुलोचना सुभाषिनी तरंग ताल स्वामिनी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||

🌼🌻🌳🌲🌳🌲🌴🌵🌾🌹🌺💮
अभेद ज्ञान का तुम्हीं अकाट ज्योति बंध हो|
समस्त सृष्टि की तुम्हीं सुभाव पुष्प गंध हो||
स्वंत्रत भाव निर्झरी सुश्वेत वस्त्र धारिणी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||

🌺🌹💮🌸💐🌴🌳🌲🌱🌷🌼🌻
अबाध नेह की तुम्हीं सुगुच्छ पुष्प कुञ्ज हो|
कराल रात्रि में तुम्हीं सुगाह्य प्राण पुंज हो||
सुपंकजा सुशोभिनी सुवेद हस्त धारिणी|
नमो नमो सरस्वती नमोस्तु हंस वाहिनी||

[पञ्चचामर छंद]

😊श्वेता राय😊
देवरिया उत्तर प्रदेश

सोमवार, 15 अगस्त 2016

नज़र द्विवेदी की एक उम्दा ग़ज़ल

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

ज़ीस्त में तेरी बता फिर क्या मज़ा रह जाएगा ।
तू अगर इक शख़्स को ही सोचता रह जाएगा ।।
♻♻
मंज़िलें पा कर मुसाफ़िर भूल जाएंगे उसे ।
शाम होते ही अकेला रास्ता रह जाएगा ।।
🍂🍂
दफ़्अतन तर्क़े तअल्लुक़ का असर होगा ज़रूर ।
उम्र भर सीने में इक कांटा चुभा रह जाएगा ।।
🔻🔻
पढ़ न पाये आप जो होंठों की ये ख़ामोशियां ।
अनकहे लफ़्ज़ों का मतलब गुमशुदा रह जाएगा ।।
🍁🍁
भूल जाएगा तू इक दिन अपने होने का सबूत ।
दूसरों के ऐब ही गर देखता रह जाएगा ।।
🐚🐚
मुद्दतों लिखता रहा जिसको लहू से, अश्क से ।
क्या ख़बर थी ख़त वो मेरा अनपढ़ा रह जाएगा ।।
🌱🌲
बादशाहत इन रिवाज़ों की डराती है मुझे ।
क़ैद इनमें ही रहा तो क्या नया रह जाएगा ।।
🌷🌷
दफ़्न तू ने कर दिया बेशक "नज़र" के जिस्म को ।
खाक बन कर हश्र तक वह फैलता रह जाएगा ।।
🍀🌿🌾🍀🍁

Nazar Dwivedi
नज़र द्विवेदी

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

शिखर अवस्थी का देशभक्त वैचारिक गीत

  ✍-हिंदुस्तान लिखो-✍
  ♻♻♻♻♻♻♻

यदि कलम चले तो मातृभूमि की,
आन बान और शान लिखो।
हे! हिंदराष्ट्र के कलमकार
हर दिल में हिंदुस्तान लिखो॥
🍂🍂
नफ़रत की दुनिया छोड़ सभी के
दिल में पलता प्यार लिखो।
उग्रवाद आतंकवाद पर
प्रेमवाद का वार लिखो॥

संस्कारी भाषा सिखलाकर
शब्दों का सम्मान लिखो।
हे! हिंदराष्ट्र..................॥
🍂🍂
दीवाली और ईद मानकर
देश के हर त्यौहार लिखो।
होली सजती रंग बिरंगी
रंगो की बौछार लिखो॥

नवरात्री नौ दिन में गुजरे
एक माह रमजान लिखो।
हे! हिंदराष्ट्र..................॥
🍂🍂
अब्दुल हमीद आजाद भगत के
सपनों का भण्डार लिखो।
क्रांतिकारियों की नस में है
रहता वो अंगार लिखो॥

देशप्रेमियों के कर्मों की
लिखनी है पहचान लिखो।
हे हिंदराष्ट्र...................॥
🍂🍂
अनगिन विपदाएं आती हैं
विपदाओं से छुटकार लिखो।
हर धर्म हमें सिखलाते कुछ
धर्मों से निकला सार लिखो॥

भेदभाव की दीवारें मिट जायें
ये अरमान लिखो।
हे! हिंदराष्ट्र..................॥

यदि कलम चले तो मातृभूमि की
आन बान और शान लिखो।
हे! हिंदराष्ट्र ..................।।

शिखर अवस्थी
मोबाइल नं - 8173856866
पता-ग्राम - कोरार, पोस्ट - सैर, जिला - सीतापुर, उत्तरप्रदेश।

सोमवार, 8 अगस्त 2016

नज़र द्विवेदी की उम्दा ग़ज़ल

       काव्य शिल्पी फिलब्दीह-9
      🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁

अपनी ग़र्दिश के सुबूतों को मिटाता कौन है ।
आज के हालात में अब मुस्कुराता कौन है ।।
🔴🔵
वो तो तेरी याद ने ही मुझको ग़ाफ़िल कर रखा ।
वरना अपने आप को भी भूल जाता कौन है ।।
🔷🔶
पाप अंदर का हमारे तोड़ देता बारहा ।
हमको लगता है हमें इतना डराता कौन है ।।
🔺🔻
किरकिरी बनता हमारी आंख का जो रात भर ।
ख़्वाब में आ कर हमें इतना सताता कौन है ।।
🔳🔲
फ़िक्र मुझको कुछ नहीं, हो राहज़न या राहबर ,
हाथ खाली हो तो उसके पास आता कौन है ।।
🅾0⃣
सामने रखता है हरदम वो हमारी ग़लतियां ।
आईने सा और दिल इतना दुखाता कौन है ।।
⏫⏬
बांध रक्खा दोस्तों ने प्रीत की ज़ंजीर से ।
बज़्म ऐसी छोड़ कर अब यार जाता कौन है ।।
✳✴
इक "नज़र" मासूम सी वो आंख की पाकीज़गी ।
वह मुक़द्दस मुस्कुराहट भूल पाता कौन है ।।
🔯🔯
( मुक़द्दस = पवित्र )
♻♻

नज़र द्विवेदी

दीपक कुमार नगाइच रौशन की एक बेहतरीन ग़ज़ल

काव्य शिल्पी समूह की फिलब्दीह-9
         ::: आज की मश्क़ :::
         🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂

फ़िक़्र है इस बात की उनको कि अपना कौन है ?
और  हम  ये  सोचते  रहते  पराया  कौन  है ?
🐚🐚
सबकी  चाहत है  कि वो छू लें अभी  ऊँचाइयां,
सिलसिले कोशिश के लेकिन ज़ारी रखता कौन है.
🌿🌿
शाम से ही खिल उठे हैं बामो-दर इस बज़्म के,
चिलमनों की ओट से फिर मुस्कुराया कौन है.
🍂🍂
सब  तो  अपने  हैं  यहाँ  पर  ग़ैर कोई भी नहीं,
कैसे कह दूं मैं सरे महफ़िल कि अच्छा कौन है.
🍁🍁
कौन है जो मुफ़लिसों को दे रहा है हौसला,
अश्क उनके पोंछने आता फ़रिश्ता कौन है ?
🌲🌲
दीदा-ए-तर  से  किसे  देखूं  किसे  पहचान लूं,
दोस्त है वो या है दुश्मन किसका साया कौन है ?
🍀🍀
बे-सबब तो दिल की धड़कन तेज़ होने से रही,
देख ऐ दिल ! तेरे दर पर आज आया कौन है ?
🌴🌴
क़ैद है किस्सों में अब तो इश्क की वो दास्ताँ,
कौन फिर मजनूं हुआ है और लैला कौन है ?
🌾🌾
कौन है जिसने किया *रोशन* मेरे जज़्बात को,
दिल में उल्फ़त के चरागों को जलाता कौन है ?
🌻🌸

दीपक कुमार नगाइच 'रोशन'
उदयपुर, राजस्थान

दिल को छूती राहुल द्विवेदी स्मित की ग़ज़ल

🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻

रौशनी की जद से आगे तक गुजरता कौन है ।
तीरगी में मुँह छुपाये एक साया कौन है ।।
🍀🌿🍀🌿
इस सियासत के अजब किरदार होते हैं मियाँ ;
ये बताना है बहुत मुश्किल कि सच्चा कौन है ।
🐚🐝🐚🐝
रौशनी की चाह में तुमने जला दीं बस्तियाँ ;
फिर भी उस घर में दिया अक्सर जलाता कौन है ।
🌹🌿🌹🌿
चन्द एहसासों के सिक्के और कुछ सपने लिए ;
बूढ़े बरगद के हवाले से सिसकता कौन है ।
🍁🌲🍁🌲
अब तलक हैरान हूँ ख्वाबों से होकर रूबरू ;
इन निगाहों को खुदाया ख्वाब देता कौन है ।
🍀🍂🍀🍂
दौरे-रुक्सत में हुई है जिंदगी से आशिकी ;
देख कर मुझको न जाने मुस्कुराया कौन है ।
🌴🌾💐🌴

राहुल द्विवेदी 'स्मित'
इटौंजा, लखनऊ

सुनील त्रिपाठी की रचनाएं

               गीतिका
     आधार छंद -वाचिक स्रिग्वणी
वाचिक मापनी- २१२ २१२ २१२ २१२
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स्वस्थ तन स्वच्छ मन स्वच्छ धन चाहिए ।
स्वच्छ सम्पूर्ण        भारत वतन  चाहिए ।

साधना के लिए   काव्य साहित्य की ।
अध्ययन साथ चिन्तन मनन  चाहिए ।

भाव सँग शिल्प का हो समन्वय नया ।
तीव्र हो धार        ऐसी कहन चाहिए ।

अनुगमन कर बहेंगी     पतित पावनी ।
तप भगीरथ    सरीखा गहन चाहिए ।

सिद्ध होगा  न लांछन कभी आप पर ।
अग्नि में जानकी     सा दहन चाहिए ।

जो प्रणय को परख लें मिलाकर नयन ।
प्रीति के पारखी        वो नयन चाहिए ।

                 गज़ल
     बह्र-१२२ १२२ १२२ १२२
🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁

हमारे लहू का  जो' प्यासा रहा है ।
लहू  का उसी से ही  रिश्ता रहा है ।

उसे आजमाया कई बार फिर भी।
करें क्या उसी पर भरोसा रहा है ।

खुशी का अगर मोल अनमोल है तो ।
कहाँ दर्द का       भाव सस्ता रहा है ।

मिली है हमेशा ही' मंजिल उसी को ।
लगातार आगे जो'     बढ़ता रहा है ।

कभी कर सका वो न इज़हार  हम  से ।
पड़ा सामने जब     तो चुप सा रहा है ।

हुई ज़िन्दगी पिन कुशन की तरह अब ।
हटा एक पिन        एक चुभता रहा है ।

मुक़म्मल कभी घर न हो पाया' रौशन ।
दिया इक जला,      एक बुझता  रहा है ।

                   मुक्तक
🍀🍂🍀🍂🍀🍂🍀🍂🍀🍂🍀🍂🍀🍂

नहीं बैठे कभी मिलते वे' ----दिनभर आशियानों पर ।
बुलन्दी प्रिय जिन्हें भी है ------वे' रहते हैं उड़ानों पर ।
हृदय में है इरादा दृढ़,-------- परों में हौसला जिनके  ।
पहुँच कर ही वे' दम लेते हैं 'मंजिल के ठिकानो पर ।

                     मुक्तक
🐚🌷🐚🌷🐚🌷🐚🌷🐚🌷🐚🌷🐚🌷

शल्य क्रिया दहशतगर्दी की, हो तो टाँग अड़ाना मत ।
सैन्यबलों के ऊपर ईटें ,       पत्थर अब बरसाना मत ।
पैलट गन को छोड़ काट कर,    रख देंगें तलवारों  से ।
अब विष बेलें घाटी की फिर, सड़कों पर फैलाना मत ।

संक्षिप्त परिचय
***************
पूरा नाम - सुनील कुमार त्रिपाठी
पिता का नाम - स्व. पंडित चन्द्रदत्त त्रिपाठी "शास्त्री"
माता जी का नाम- स्व.रामपति त्रिपाठी
स्थायी निवासी - ग्राम-पीरनगर
पोस्ट -कमलापुर ,जिला-सीतापुर
निवास जन्म से लखनऊ में-
स्थानीय पता:-
288/204 आर्यनगर लखनऊ -226004।
शिक्षा - परास्नातक विधि
व्यवसाय- इलेक्ट्रानिक
शौकिया लेखन ।
मुक्तक, छंद, गीतिका
प्रथम प्रकाशित रचना :- 'गीतिकालोक' गीतिका संकलन में
सम्मान:- गीतिकाश्री सम्मान (सुलतानपुर उ.प्र.)

रविवार, 7 अगस्त 2016

रमा वर्मा जी का रक्षाबन्धन गीत

काव्य शिल्पी समूह के 'गीत-गागर' में चयनित।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

सावन आया फिर से लेकर
राखी का त्यौहार सखी !
पाएँगे हम कुछ भैया से
सुंदर सा उपहार सखी !

🐚🐚🐚🐚🐚🐚
शगुन मनाएं मंगल गायें,
राखी थाल सजायेंगे,
अक्षत रोली मंगल मोली,
टीका भाल लगाएँगे,
रहे महकता सदा हमारे
भैया का संसार सखी |
पाएँगे हम कुछ भैया से
सुंदर सा उपहार सखी !

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
रूपये पैसे धन दौलत को
रिश्तों में क्यों लाएँ हम !
छोटी छोटी नोंक झोंक को
दिल से नहीं लगाएँ हम
दुआ यही है जीवन उनका
रहे सदा गुलजार सखी !
पाएँगे हम कुछ भैया से
सुंदर सा उपहार सखी !

🌿🍀🌿🍀🌿🍀🌿
कच्चे धागों का है बंधन
तुम भी रखना मान सदा !
जग में है अनमोल ये राखी
इसका रखना भान सदा !
कभी न कम होने हम देगें
आपस का ये प्यार सखी !
पाएँगे हम कुछ भैया से
सुंदर सा उपहार सखी !

🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼
यश वैभव खुशहाली नित नित
बढती जाए आँगन मे !
यही तमन्ना है दिल की जो
पूरी होगी सावन में !
दिन दिन बढ़ता रहे सवाया
भैया का व्यापार सखी !
पाएँगे हम कुछ भैया से
सुंदर सा उपहार सखी !

     रमा वर्मा
नागपुर, महाराष्ट्र
      भारत

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

विनोद चन्द्र भट्ट की एक ग़ज़ल

'काव्य-शिल्पी' फिलबदीह - ०८
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ख्वाब था जो कभी अब समन्दर हुआ ।
जश्न  में  डूबा' हर  एक  मन्ज़र  हुआ ।
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देखता  मैं  रहा उनकी' दरिया दिली,
प्यार में लुट गया ऐसा' अक्सर हुआ।
💐💐
खुशनुमा  जिन्दगी  जो  मुझे  मिल गई,
अपने' दिल का मैं' देखो सिकन्दर हुआ।
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दोस्त बनकर दिया जिसने' मुझको जहर,
दिल  से'   मेरे  वही  आज  बेघर  हुआ।
🌲🌲
ख्वाहिशें थी बहुत जिन्दगी में मगर,
रूठ जो  वो  गईं तो मैं' बंजर हुआ।
🌴🌴
जिसने' अक्सर कहा खुद को अंगार है
मुश्किलें  देख  वो आज  कायर  हुआ।
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विनोद चन्द्र भट्ट,
गौचर(उत्तराखण्ड)