गुरुवार, 28 जुलाई 2016

राहुल द्विवेदी स्मित का ओजपूर्ण गीत

          मैं भारत का अंगारा हूँ
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मैं भारत का अंगारा हूँ, आग लगाने आया हूँ ।
आतंकी अँधियारे को मैं, दूर भगाने आया हूँ ।।

सरहद की मिट्टी का चन्दन, इस माथे पर रहता है ।
देशप्रेम की लिए लालिमा, रक्त नसों में बहता है ।
स्वाभिमान की कीमत दुनिया, को दिखलाने आया हूँ...
आतंकी........।।

तुमने हाथ बढ़ाया हमने, उन हाथो को चूम लिया ।
लिए शांति का परचम हमने, रावलपिंडी घूम लिया ।
चले दोगले दाँव जो' तुमने , उन्हें मिटाने आया हूँ ...
आतंकी........।।

मैं गाली की भाषा में, अंगार नही लिख सकता हूँ ।
और दोगले गद्दारों को, प्यार नहीं लिख सकता हूँ ।
मैं हूँ सूर्यवंश का प्रहरी, आज बताने आया हूँ ।
आतंकी .......।।

अगर शान्ति के लिए शांति की, नदिया बनकर बहता हूँ ।
शीश काटने वालों का फिर, शीश काट भी सकता हूँ ।
दुश्मन को उसकी करनी का, सबक सिखाने आया हूँ ...
आतंकी............।।

बेगुनाह तुमने जो मारे, उनका दर्द भुला बैठे ।
हमने रावण मारे तो तुम, काला दिवस मना बैठे ।
पुनः विश्व में रामशक्ति की, झलक दिखाने आया हूँ.....
आतंकी..........।।
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राहुल द्विवेदी 'स्मित'
ग्राम-करौंदी, पोस्ट-इटौंजा,जनपद: लखनऊ (उत्तर प्रदेश) 226203
Whats App : 7499776241
ईमेल: asmitdwivedi01@gmail.com

जगदीश जलजला का वासन्ती गीत

गीत-बसन्त

आज धरा के आँगन देखो
फ़ैल रही मादक हरियाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।

लेकर गन्ध मलय की भू पर
मन्द पवन के झौंके आते।
अवनी के आँगन का आतप
शीतलता से हर ले जाते।।
नूतन किसलय लेकर लतिका
मन ही मन में इठलाती है।
फूलों के रस की वो गागर
अब छलक छलक कर जाती है।।

यौवन आज विपिन पर आया
मन में प्रमुदित है वनमाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।

पिंगल पिंगल प्यारी धरती
अरुण किरण की भर कर रोली।
प्रणय कामना लेकर मन में
दुल्हन आज गगन की हो ली।।
पिकप्रिय में पिकबयनी देखो
पिकबल्लभ पर जाकर डोली।
पिअराई धरती ने पहनी
पीली चूनर पीली चोली।।

पीत धरा ने भरी माँग में
सदा सुहागन वाली लाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।

मन में छवि मधुपति की लेकर
मधुमति में मधु धारा बहती।
मधुमाधव का स्वागत करने
व्याकुलता कलियों में रहती।।
ऋतुराज तुम्हारे वन्दन में
फूलों ने सम्पुट खोल दिया
मधु मकरन्द लिए भँवरों ने
लो गीतों में रस घोल दिया।।

तेरा आलिंगन करने को
व्याकुल है चम्पा की डाली।
नव पल्लव को रिझा रही है
नव पराग के रस की प्याली।।

जगदीश जलजला
बारा राजस्थान

जगदीश जलजला का ओजपूर्ण सृजन

             पुरस्कारों की वापसी
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केवल वन्दन सीखा जिनने सत्ता के गलियारों का।
उनको प्रतिफल मिलता आया शासन के उपहारों का।।

चरण वन्दना चाटुकारिता मापदण्ड रह जाते हैं।
उस शासन के पुरुस्कार को नालायक ही पाते हैं।।

जो बादल सूरज पर छा कर तनिक देर इठलाते हैं।
लेकिन काली काल घटा से तेज नहीं ढक पाते हैं।।

कर्तव्य कर्म के कौशल से जो भी इसको पाते हैं।
बोलो कब वो पुरुस्कार को भारत में लौटाते हैं।।

पूछ रहा हूँ खुले मंच से उत्तर मुझको दे देना।
तर्क सत्य हो अगर नहीं तो प्राण यहीं पर ले लेना।।

छह दशकों से खूब रेवड़ी बाँटी है जिन लोगों में।
योगदान उनका इतना ही लिप्त रहे वो भोगों में।।

आग लगा कर घाटी में जब पंडित मारे जाते हैं।
जब दिल्ली में सरदारों के शीश उतारे जाते हैं।।

जब सड़कों पर व्याभिचार का नंगा नर्तन होता है।
जब सड़को पर भूखा भारत तड़प तड़प कर रोता है।।

जब भारत का कौना कौना धधका था अंगारों से।
जब घाटी में जला तिरंगा घोर विभाजक नारों से।।

याद गोदरा आता है क्या जिन्दा जलती लाशों का।
बने हुए थे सूत्रधार तुम खूनी खेल तमाशों का।।

तब सहिष्णुता का यह नारा तुमको याद न आया था।
धूँ धूँ करके जलता भारत तुमको कैसे भाया था।।

व्यर्थ एक दुर्घटना को तुम रंग सियासी देते हो।
सम्प्रदाय सद्भाव यहाँ पर छीन देश का लेते हो।।

सकल विश्व में दृष्टि घुमा लो फिर मुझसे कहने आना।
भारत जैसा देश मिले तो आकर के तुम बतलाना।।

जहाँ शांति की सरिता बहती लेकर भाई चारा है।
जहरीले उद्गारों से क्यों तोड़ा वही किनारा है।।

इस धरती की खा कर रोटी इसके जल को पीते हो।
खुली हवा में लेकर साँसे इसी धरा पर जीते हो।।

कर्ज भूल कर माटी का तुम गीत विदेशी गाते हो।
काले कलुषित भाव लिए तुम वहाँ नहीं क्यूँ जाते हो।।

पता तुम्हे लग जायेगा फिर भारत कैसा होता है।
जाओ आज तुम्हारे आया पाकिस्तानी न्यौता है।।

देता हूँ मैं खुली चुनौती रजत पट्ट के तारे को।
गाली देकर एक दिखा दे दाऊद से हत्यारे को।।

दम घुटता है यदि यहाँ तो चला नहीं क्यों जाता है।
रे गद्दार देश को अपनी सूरत क्यों दिखलाता है।।

और सुनो सम्मान यहाँ पर जो लौटाने आए हैं।
मातृ भूमि का गीत नहीं जो जीवन में लिख पाए है ।।

कितना वो पुरषार्थ लिए हैं हमने उनमें देखा है।
अपने अपने आकाओं का लिखा जिन्होंने लेखा है।।

सम्मान देश का दो वापस अब आदेश हमारा है।
अब सम्मान उसी का होगा जिन्हें वतन ये प्यारा है।।

पौरुष हीन पुरुष हैं वो जो पुरुस्कार लौटाते हैं।
माँ वाणी वरदानी को कब पापी फूल चढ़ाते हैं।।

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जगदीश सोनी
उपनाम -  जलजला
जन्म तिथि - 24 जुलाई 1964
शिक्षा - एम. काम. व्या. अध्ययन,एम. ए. हिंदी साहित्य , बी. एड.
शैली - ओज
पता -  बी  - 4 प्रताप नगर बाराँ, 325205 ( राज.)
प्रकाशन -  प्रथम कृति - बलि पथ
द्वितीय - प्रेस में
सम्पर्क - 9414190551
             9571818218

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

पुष्प लता शर्मा की कोमल रचनाएं

                 【गीतिका

लड़कपन का सुहाना वह ,जमाना याद आता है
झमाझम बारिशों में छपछपाना याद आता है

जमा कर लें करोड़ों आज खाते में मगर फिर भी 
अठन्नी में ख़ुशी से झूम जाना याद आता है

बदलते दौर में बदली सभी हैं आदतें अपनी
मगर वह बेवजह ही मुस्कुराना याद आता है

कभी गिल्ली कभी डंडा , पतंगे थीं कभी जीवन
कभी  पोखर में' वह डुबकी, लगाना याद आता है

कभी तितली पकड़ते थे , कभी मछली पकड़ते थे
अहा गुजरा हुआ वह पल, पुराना याद आता है।

बगीचे थे फलों के खूब अपने भी मगर यारों
हमें वह दूसरों के फल ,चुराना याद आता है

सिमटकर रह गये रिश्ते हुए  घर द्वार भी छोटे
हमें अपना  वही  प्यारा   घराना याद आता है

                【ग़ज़ल

है मुहब्बत अगर बोलिये कम से कम ,
बात दिल की न दिल में रहे कम से कम ।।

इश्क छुपता नहीं है छुपाने से' भी 
बात इतनी जहन बाँध ले कम से कम ।।

कब नयन से छुपे  राज़ इक़रार के,
अश्क पानी न बनकर बहें कम से कम ।।

आइना शर्म से  लाल हो जायेगा,
मुस्कुरा कर तो' मत देखिये कम से कम ।।

क़त्ल तो ख्वाहिशों का किया आपने ,
इश्क दिल में न अब यूँ ढ़ले कम से कम ।।

"पुष्प " प्यारे तो' लगते बहुत आपको ,
जानकर मत इन्हें   रौंदिये कम से कम ।।

        *दुर्मिल सवैया (112x8)*
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वह बैठ शिला पर साजन को , मनही मन में अब याद करें    
अब आन मिलो मुझको सजना,हर  ऐक घड़ी  फरियाद करे
नयना भर के सिल होठन को, तकि नीर हिये दुख नाद करे
जब जीवन हो ठहरा जल सा,मन चंचल ये अवसाद करे.

            *दुर्मिल सवैया (112x8)*
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छवि नंद लला  मन मोहि गई,उपमा न सरोज सुलोचन की ।
सिर मोर किरीट सुशोभित है,कर बासुरिया रहती जिनकी ।
कटि कामरि काछति है करिया ,लटकैं उन कानन में झुमकी ।
तन पीत पटा,बनमाल गले,पग बाजति पैंजनियाँ उनकी.

*सामान्य परिचय*

1-नाम :- पुष्प लता शर्मा
2:- प्रबंधक (F&A) (SGS Infratech Limited) 
3:-प्रकाशन विवरण:-
            विभिन्न पत्र  पत्रिकाओं में प्रकशित लेख कविता गीत (हमारा पूर्वांचल , अटूट बंधन , जय विजय पत्रिका , साहित्य सरोज वोमेन एक्सप्रेस , हमारा मेट्रो , वर्तमान अंकुर , आज समाज ,रेड हैंडेड, नव प्रदेश ,निर्भया संग्रह, व्यवस्था दर्पण, भारत की प्रतिभाशाली हिन्दी कवयित्रियाँ-संग्रह इत्यादि   
3:-सम्मान का विवरण :-
             युवा उत्कर्ष सारस्वत सम्मान , मुक्तकलोक -मुक्तक रत्न सम्मान , "नारी गौरव सम्मान" -जे एम डी पब्लिकेशन , युवा उत्कर्ष- साहित्य गौरव सम्मान , युवा उत्कर्ष -श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान , महिलाओं को वूमन आफ द ईयर सम्मान -गहमर वेलफेयर सोसाइटी इत्यादि ।